डर के आगे जीत है !
हमारा डर हमारे मन में उपजी नकारात्मक अत्यधिक सोच का ही परिणाम होता है। कभी अपने आप पर और अपनी क्षमताओं पर अन्धा विश्वास करके देख लो और कार्य की शुरुआत पूरी लगन के साथ करके देख लो ,हिम्मत अपने आप आ जाएगी।
जब तक हम डर का सामना नहीं करते , हमें सब कुछ डरावना लगने लगता है , इसलिए अच्छा है कि डर का एक बार सामना करके देख लो डर अपने आप कम हो जायेगा। अगर हम डर का सामना किये बिना उस कम से भागेंगे तो हमें जीवन भर कार्य को नहीं करने की पीड़ा बनी रहेगी जो अगले कार्य की सफलता को भी प्रभावित करेगी ; इसलिए अच्छा है कि डर का सामना हिम्मत और सूझबूझ के साथ करें और सफलता प्राप्त करें।
डर के कारण की समीक्षा करोगे तो तुम्हें डर से निकलने के तरीके भी मिलेंगे , उन पर कार्य करो और अपनी जीत पक्की करो।
जब तक हम पानी में नहीं उतरते पानी हमें डराता है , इसलिए एक बार पानी में उतर कर देख लो।
जब भी हम एक नौकरी से दूसरी नौकरी पाना चाहते हैं तो हमें जमी-जमाई नौकरी जाने का डर सताने लगता है। " क्या हम जब पढ़ रहे थे तो ये नौकरी थी ? क्या हम पहले ही दिन इस नौकरी में सफल हो गए थे ? नहीं ना ? ; हमें काफ़ी शुरूआती समस्याओं का सामना करना पड़ा था और हमें काफ़ी मेहनत भी करनी पड़ी थी। " तो फिर हम नई नौकरी से क्यों डरें ? अगर हम पूर्ण साहस / आत्मविश्वास के साथ पूर्ण प्रयास करेंगे तो नई नौकरी में भी तरक्की जरूर पाएंगे।
कई बार हम आने वाली काल्पनिक समस्याओं और हमारी कमियों के डर से नया कार्य या व्यवसाय करने से डर जाते हैं ,ये सही नहीं है। डर कर व्यवसाय का विचार छोड़ने से अच्छा है इसे अजमाकर जरूर देखो ,चाहें शुरुआत छोटे स्तर से करो और चाहे पुराने कार्य के साथ शुरुआत करो ,लेकिन शुरुआत जरूर करो। जैसे - जैसे हम आगे बढ़ते जायेंगे ,आने वाली समस्याओं का सामना पूर्ण कुशलता के साथ करते जायेंगे , हमें आने वाली समस्याओं की समझ मिलती जाएगी। इसलिए कार्य की शुरुआत से कभी ना डरो और जितना जल्दी हो कार्य को पूरी सोची-समझी
योजना के अनुसार पूरी सूझबूझ के साथ आरम्भ कर दो ; तुम्हे कार्य ही सब कुछ सीखा देगा।
कोई भी जन्मजात योग्य नहीं होता है, हमारे कार्य ही हमारी समझ और योग्यता बढ़ाते हैं।
जोखिम लेते समय अपनी भावनाओं को वश में रखो , सफलता की सम्भावना को बढ़ाने के उपाय खोजो , कार्य के अनुरूप नित्य-नया सीखते रहो , सफलता जरूर मिलेगी।
हमारा मन हमें कुछ नया करने या जोखिम भरा कार्य करने से रोकता है , यह हमें अहसास कराता है कि " हम सफल नहीं हो सकते और अगर असफल हो गए तो हमें हमारे वर्तमान सारे जमें-जमाये कार्यों से भी हाथ धोना पड़ सकता है।"
हमारा मन आलसी होता है और मन शीघ्र आसान मिलने वाली सफलता के प्रति ज्यादा आकर्षित होता है ,अगर हम इसको वश में नहीं कर पाए तो मन कभी भी हमें सही दिशानिर्देश नहीं दे सकता।
अगर मन हमें जोखिम भरा कार्य करने से रोके और बताये कि हम सफल नहीं हो सकते , अहसास कराये कि हमें कुछ भी नया करने का प्रयत्न नहीं करना चाहिए तो ऐसे समय हमें तर्क संगत आत्म विश्लेषण और तर्क संगत सभी वर्तमान और भविष्य की स्थिति पर विचार करके तर्क संगत निर्णय लेने चाहिए ,कभी भी भावनाओं और डर के प्रभाव में आकर निर्णय नहीं करने चाहिए।
अच्छा होगा अगर हम स्वयं पर अँधा विश्वास करें और सकारात्मक सोच ( POSITIVE MINDSET ) को अपनाएं।
अगर हम सोच समझकर , अपनी क्षमताओं का आकलन करके सही निर्णय पर अटल विश्वास के साथ कठोर परिश्रम करेंगे तो कोई कारण नहीं की हमें सही समय पर अच्छे परिणाम ना मिलें ।
मानसिक विकास करें ,भावनाओं पर पूर्ण नियंत्रण रखें ; जो भी निर्णय लें पूर्ण सोच-समझकर लें। कोई भी समस्या आये उससे बिना घबराये समस्या का कारण जानकर समाधान का तरीका खोजो और उस कारण को समाप्त करने कि दिशा में कार्य करो , समस्या और डर दोनों ही चले जायेंगे।
डर मन की दशा पर निर्भर करता है ,डर हमारे आत्मविश्वास ओर सोच पर निर्भर करता है।
हम जैसा सोचेंगे वैसे ही ख्याल आएंगे।
हमारी सफलता पाने की जल्दबाजी ओर अत्यधिक आशा भी डर को बढाती है ,अतः अच्छा होगा हम वास्तविकता में जियें ओर धैर्य के साथ सही समय का इंतज़ार करते हुए निरंतर प्रयास करें ,अच्छे परिणाम सही समय पर प्राप्त हो ही जायेंगे।
हमारे मन की भावनाएं ओर सोच ही तो हमें निडर / सवल या दुर्वल बनाती है। हमें स्वयं पर पूर्ण विश्वास करना होगा , अगर हम स्वयं पर विश्वास नहीं करेंगे तो दूसरे कैसे हम पर भरोषा कर सकते हैं।
अगर तुम सफलता की सीढ़ी पर ऊंचाई तक जाना चाहते हो तो तुम्हें गिरना सीखना ही होगा , गिरकर पुनः प्रयास करने ही होंगें। निराशा ओर हताशा तुम्हारे कदम रोक सकती है ,इसे नकारना आना ही चाहिए।
अगर जीवन में बड़ी सफलता प्राप्त करनी हो तो जोखिम तो उठानी ही होगी। बिना जोखिम लिए हम आगे बढ़ ही नहीं सकते हैं।
जितनी बड़ी जोखिम हम उठाएंगे , उतनी ही बड़ी उपलब्धि / सफलता भी तो हमें ही मिलेगी ; तो फिर हम डर-डर कर क्यों जियें ओर निराशा में समय बर्बाद करें ?
जोखिम सोची-समझी लो ओर योजना के साथ कार्य करें। हमारे लक्ष्य ओर निर्णयों पर कभी भी किसी ओर के नकारात्मक सुझाव , प्रशनों का असर नहीं पड़ना चाहिए ; हमेशा अपने दिल की बात सुनो कभी भी किसी और के कारण अपने लक्ष्य पर प्रभाव न पड़ने दो।
कोई भी इंसान जन्मजात विशेष नहीं होता ,हम सभी सामान विशेषताएं रखते हैं ; लेकिन हमारे विशेष कार्य , परिश्रम , सोचने और व्यव्हार करने का तरीका हमें दूसरों से विशेष बना सकता है और विशेष पहचान दिला सकता है।
हमारी सोच सकारात्मक और कार्य के अनुरूप होनी चाहिए। हम जैसा सोचेंगे वैसे ही लक्ष्य और प्रेरणाएं हम प्राप्त करेंगे। अतः पहले अपनी सोच को बड़ी करो , तुम्हें तुम्हारे
वास्तविक लक्ष्य स्वतः ही नज़र आने लग जायेंगे।
कभी भी विचार करने में ही समय बर्बाद न करो ; विचार करो और अपने लक्ष्य पर योजना के साथ लग जाओ ,इस प्रकार तुम स्वतः ही सफलता की ओर बढ़ते चले जाओगे।
क्यों हम पिछली विफलताओं , परेशानियों को सोच-सोच कर हमारे वर्तमान को ख़राब करें। पिछली बातों को याद करने से मात्र समय ही बर्बाद होगा ; चिंताएं ओर निराशाएं ही बढ़ेंगी , अतः अच्छा होगा हम सिर्फ अपने वर्तमान को विकसित ,सफल बनाने के प्रयास करें। अगर वर्तमान के प्रयास सकारात्मक होंगे तो भविष्य तो स्वतः ही अच्छा होगा।
सफलता के मूल कारक :-
1. अगर हम डर पर नियंत्रण करके जीवन में वास्तविक स्थाई सफलता प्राप्त करना चाहते हैं तो मन की निडरता ,आत्म-विश्वास , स्वयं पर आत्म-नियंत्रण जरुरी है।
2. मन की सकारात्मक सोच :
मन की सकारात्मक सोच सीधे हमारी सफलता को प्रभावित करती है।
अगर हम किसी कार्य के प्रति अत्यधिक नकारात्मक सोचेंगे ( OVER - THINKING ) तो हमारा अवचेतन मन भी वैसी ही प्रतिक्रियात्मक भाव पैदा करेगा , जिससे हमारे में निराशा और भय ( डर ) के भाव पैदा होंगे और हम कार्य की शुरुआत में ही भय के कारण शुरू करने में ही डर सकते हैं।
अतः अच्छा होगा हम हर बात के सकारात्मक पहलु को देखें और अगर नकारात्मक विचार आएं तो उसका सूक्षम विश्लेषण करके उसे सकारात्मक तरीके से हल करें। अतः मन की सोच बदलो सब कुछ अच्छा होने लग जायेगा।
" हमें सोचने-समझने का तरीका बदलना होगा ; अगर हम नकारात्मक सोच से परेशान हैं या हमारा व्यव्हार चिड़चिड़ा / कुंठित जैसा हो और हममें डर और निराशा के भाव लगातार आ रहे हों।"
हम जो भी देखते हैं या सोचते हैं ,इनकी सूचनाएं सीधे हमारे मस्तिष्क में जाती हैं। हमारा मस्तिष्क सूचनाओं और हमारी सोचने के तरीके के अनुसार इन सूचनाओं पर हमें प्रतिक्रियाएं देना शुरू कर देता है। इनके प्रभाव से हमारे व्यव्हार , भावनाओं , विचार और अनुभव करने के तरीकों पर गहरा प्रभाव पड़ता है।
सकारात्मक और अच्छा सोचने से हमें आत्मबल , उत्साह , हर्ष की अनुभूति होती है और हम परिस्थितिओं और कार्य के प्रति हमें ऊर्जावान और आत्मविश्वास से पूर्ण पाते हैं और हम कार्य को करने में थकावट या डर को महसूस ही नहीं करते हैं ; कई बार तो हम इस दसा में इतना तल्लीन हो जाते हैं कि हम हमारे कार्य से जुड़ाव महशूस करते हैं और खुश रहते हैं।
इसके विपरीत अगर हमारी सोच कार्य या परिस्थितिओं के बारे में नकारात्मक या शक करने वाली अधिक होगी तो हम डर , निराशा और बैचेनी का अनुभव करने लगते हैं और बार-बार इन्हीं नकारात्मक सोच के कारण हम अधिक डर और बैचेनी / अवसाद ग्रस्त हो जाते हैं और हम डिप्रेशन ( खिन्नता ) का अनुभव करने लग जाते हैं। ये स्थिति हमारे सफलता के मार्ग में बाधक होती है और हम कार्य करने में थकान और विचलित से अनुभव करने लग जाते हैं और कार्य में हमारे को स्थिर रखना मुश्किल हो जाता है।
अतः इसका एक ही उपाय है की हर घटना / दूसरों के व्यव्हार / दूसरों के विचारों और उनकी प्रतिक्रियाओं और व्यव्हार आदि को सकारात्मक सोच के साथ सोचे-समझें और जाने-अनजाने किसी नकारात्मक विचार और डर के साये में ना जाएँ।
हर घटना के दो पहलु होते हैं - सकारात्मक और नकारात्मक ; अतः कोई धारणा बनाने से पहले इनके सकारात्मक पहलु पर जरूर विचार करलें। इससे तुम्हारे ज्यादातर भ्रम और शंकाएं दूर हो जाएँगी और तुम अपने को अच्छा महसूस करोगे।
हम स्वयं ही हैं जो अपने आप को भ्रम और शंकाओं के जाल से मुक्त कर सकते हैं। अतः अपने दिल की बात सुनें और कोई निर्णय या धारणा बनाने से पहले सावधानी पूर्वक अच्छे से सकारात्मक भाव से विचार करें। इससे आपका डर आप पर कभी हावी नहीं होगा और आप अपने को खुश और निर्भय रख सकते हो।
किसी कार्य में लगातार बिना थके-निराश हुए कार्य करने के लिए दृढ-इच्छाशक्ति की जरुरत होती है और कार्य के प्रति निष्ठा भी जरुरी है।
3. असफलता :
असफलता से डरना नहीं चाहिए। आगे बढ़ने के लिए असफलता भी जरुरी है।
असफलता ही हमें कुछ नया करने और सीखने की समझ देती है , जिससे हम कार्यों और परिस्थितियों से लड़ना और कुछ नया सीखकर कार्यों को नए तरीके से करना सीखते हैं। असफलता अवसर पैदा करती है , इससे हमें सीखने का मौका मिलता है।
4. जोखिम लो और हिम्मत / हौसला बढ़ाओ :
जोखिम की तर्कसंगत गणना करें और जो जोखिम हमारी क्षमता और परिस्थितिओं के अनुकूल हों लें और पूर्ण लगन के साथ कार्य आरम्भ कर दें।
जोखिम उठाकर सीखो। जो हमारी कमजोरियाँ हों , उस पर कार्य करें और मेहनत के साथ अपनी कमजोरिओं को अपनी शक्ति बनायें।
कोई कार्य असंभव नहीं होता है ,अगर हम सतत प्रयास समझदारी के साथ करें।
स्वस्थ्य , सोची-समझी जोखिम लेने से कभी नहीं डरना चाहिए। अगर आगे बढ़ना है तो हमें जोखिम लेनी ही पड़ेंगी ; परन्तु जोखिम लेने से पहले उस पर सकारात्मक कार्य और सकारात्मक योजना तो बनानी ही पड़ेगी ; इस प्रकार हम जोखिम को जीत में बदल सकते हैं।
हमें जोखिम के दौरान हमारी भावनाओं को काबू में रखना होगा ताकि मन विचलित ना हो।
5. लक्ष्य पर ध्यान :
लक्ष्य पर ध्यान रखो , मेहनत करो। जैसे-जैसे सफलता हमारे पास आती जाएँगी ; परेशानियाँ अपने आप छोटी लगने लग जाएँगी।
बुरा वक्त हमें मजबूत बनाता है अगर हम सकारात्मक सोच के साथ बढ़ना जारी रखेंगे।
बस कार्य पर योजना के अनुसार कार्य करते जाओ ,सफलता समय के साथ मिलती ही जाएगी।
6. ध्यान ( MEDITATION ) :
हमारे शरीर का पूरा नियंत्रण मष्तिष्क के नियंत्रण में होता है I मष्तिष्क का नियंत्रण मन के द्वारा होता है ; यहीं से सारे नियंत्रण सन्देश पुरे तंत्र को जाते हैं I
मन को साफ करने का सर्वोत्तम उपाय मैडिटेशन ( ध्यान ) होता है I
ध्यान का हमारे अवचेतन मन पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जिनके सयुंक्त प्रभाव से हम सकारात्मक-बोल ( AFFIRMATION ) का उपयोग करके कई आश्चर्यजनक हल प्राप्त कर सकते हैं I
ध्यान के द्वारा शरीर के चारों और एक ऊर्जा चक्र का निर्माण होता है ; जिनमें सृजित विश्व-शक्ति के उपयोग द्वारा शरीर के सारे रोग , दोष दूर हो जाते हैं , शरीर में नई उमंग ,नई स्फूर्ति, चेतना ,उत्साह का आभास होता है I हमें विवेक व् ज्ञान की प्राप्ति होती है I
ध्यान से मष्तिष्क की भौतिक व् मानसिक अवस्था में परिवर्तन आता है I ध्यान से मस्तिष्क के सकारात्मक भाग का आकार बढ़ता है और नकारात्मक भाग का आकार कम हो जाता है I इसी का प्रभाव होता है कि हम अपने को ज्यादा उत्साहित , एकाग्रचित महसूस करते हैं I
इससे आत्म-विश्वास , सोचने -समझने की क्षमता बढ़ती है I सकारात्मक सोच में बृद्धि होती है I एकाग्रचित्तता बढ़ती है I सकारात्मक सोचने की क्षमता विकसित होने के कारण हम हर घटनाओं और दूसरों की बातों और दूसरों के बारे में सकारात्मक विचार करने लगते हैं ; जिसके परिणामस्वरूप हमारे मन के वहम और डर में कमी आती है।
इससे आत्म-विश्वास , सोचने -समझने की क्षमता बढ़ती है I सकारात्मक सोच में बृद्धि होती है I एकाग्रचित्तता बढ़ती है I सकारात्मक सोचने की क्षमता विकसित होने के कारण हम हर घटनाओं और दूसरों की बातों और दूसरों के बारे में सकारात्मक विचार करने लगते हैं ; जिसके परिणामस्वरूप हमारे मन के वहम और डर में कमी आती है।
अतः ध्यान को नियमित रूप से करो और जब भी मन में बुरे विचार या डर के भाव आएं ; कुछ पल के लिए शांत-चित्त बैठ जाएँ और ध्यान का अभ्यास करें ; इससे आप में सकारात्मक सोचने की क्षमता बढ़ेगी और तुम सकारात्मक हल खोज लोगे।
हमारा दिमाग काफ़ी शक्तिशाली होता है अगर हम इसे सकारात्मक सोच के साथ शांतभाव से सोचने का मौका दें तो। अतः ध्यान को अपनाकर हम अपने डर और अवसाद भरे जीवन को खुशियों से भर सकते हैं।
विशेष बातें :-
1. सफलता और असफलता को सामान रूप से लें। कभी भी असफल होने पर निराश होकर बैठ ना जाएँ और असफलता के कारण पर विचार करके उस पर सकारात्मक दिशा में प्रयास करें और निरंतर प्रयास करते रहें , सफलता जरूर मिलेगी।
सफल होने पर अपने आप को कभी भी पूर्ण ना मानें , अन्यथा आपके आगे के प्रगत्ति के मार्ग अवरुद्ध हो सकते हैं। सफल होने पर और आगे कार्य को बढ़ाने की दिशा में कार्य करें और कुछ नया सीखकर और विशेष योजना के साथ लगातार आगे सतत बढ़ते जाएँ।
2. जिंदगी की वास्तविक ख़ुशी पैसे से नहीं आती है बल्कि संघर्ष के बाद मिली बड़ी सफलता से आती है।
जब हम मेहनत के बल पर बिना किसी बाहरी सहायता और सहारे के बड़ी उपलब्धि हासिल करते हैं ,तो हमें जीवन की वास्तविक ख़ुशी प्राप्त होती है।
चाहें कितनी भी बड़ी कठिनाई क्यों ना आ जाये ,कभी भी अपने आप से ना हारो। कठिनाई का विश्लेषण करो ,कारण खोजो और कठिनाई से निकलने के रास्ते तलास करो और पुनः पूरे जोश के साथ / आत्मविश्वास के साथ कार्य में लग जाओ। अगर आपके कार्य की दिशा और योजना अच्छी होगी तो आप जरूर कठिनाइयों का सामना करके बड़ी सफलता हासिल कर लोगे।
धैर्य और सब्र के साथ निरंतर प्रयास करते जाओ , तय समय पर सफलता जरूर मिलेगी।
3. कोई कार्य असंभव नहीं होता अगर हम कार्य पर सही दिशा में सकारात्मक सोच ,अपने आप पर विश्वास के साथ ,लगन के साथ लगातार कार्य करें।
जब भी तुम्हें परेशानियाँ बड़ी लगने लगें ,तुम अपने से नीचे वालों और गरीबों को देखो ,वे सभी तुमसे ज्यादा परेशानियाँ झेल रहे हैं ;फिर भी वे तुमसे ज्यादा खुश हैं - क्योंकि उन्होंने अपनी आवश्यकताओं को अपनी क्षमताओं के अनुसार सीमित कर लिया है ,उन्होंने फिजूलखर्ची कम कर ली है। वे भी सफल हो रहे हैं ,लेकिन वे धैर्य रखना जानते हैं।
अतः धैर्यवान बनो और सफलता के लिए समय दो। सही समय पर सफलता जरूर मिलेगी। सही समय का इंतज़ार और कड़ी मेहनत तो करनी ही होगी।
4. क्यों हम दूसरों की सफलता और प्रयास से अपनी सफलता और प्रयास की तुलना करके अनचाहे डर को जन्म दें ? सबके सोचने-समझने और कार्य करने के तरीके अलग-अलग होते हैं ; अतः अपने लक्ष्य पर ध्यान दो , दूसरों को देखना और सुनना बंद कर दें।
अपने आप पर और अपनी योजना पर पूर्ण विश्वास के साथ , निरंतरता के साथ धैर्यपूर्वक कार्य करते जाओ। तुम्हें जैसे-जैसे सफलता मिलती जाएगी ,वैसे-वैसे तुममें लगन और कार्य के प्रति निडरता आती जाएगी।
हाँ ! बीच में आने वाली दिक्कतों,असफलताओं को ख़त्म करने के लिए तुम्हें नया सीखने और अधिक परिश्रम करने के लिए तैयार रहना चाहिए। बिना परिश्रम और लगन के सफलता कभी नहीं मिलती ;अतः अपने आलस को त्यागकर कार्य में पूरे मन से तत्परता के साथ लग जाओ ,तुम्हारे असफलता के सारे डर अपने आप निकल जायेंगे - जब तुम अपनी मेहनत के परिणाम देखोगे।
तुम्हारी असफलता और दिक्कतें तुम्हें कुछ नया सीखने, कार्य करने को प्रेरित करेंगीं ; उसे अपनाएं और नया सीखकर और अधिक प्रयास करें।
समय का सदुपयोग करो और सफलता के प्रयास में समय खर्च करो।
5. जीवन की प्राथमिकताएं और उद्देश्य तय करो। बिना लक्ष्य और उद्देश्य के कभी भी हम अपने मन को एकाग्र नहीं कर सकते हैं।
हमें अपने लक्ष्य के प्रति स्व-प्रेरित होना होगा और अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए दृढ निश्चय के साथ अथक प्रयास और कठोर परिश्रम भी करने होंगे ; तभी हमें जीवन का वास्तविक आनंद आएगा।
6. " मन के हारे हार है , मन के जीते जीत ! "
हम हौंसला रखकर ही डर को जीत सकते हैं। जीवन की वास्तविक सफलता हमारी हिम्मत के बल पर ही मिलती है ,चाहें परिस्थितियाँ कितनी ही ख़राब क्यों ना हों।
डर से निराशा मिलती है अतः डर को ख़त्म करने के लिए हिम्मत के साथ डर के कारण खोजकर उसे दूर करने के प्रयास करो।
कभी भी अनचाहे और नीरस / निराशा भरे लोगों की दोस्ती ना रखो ; सदा ऐसे लोगों को दोस्त बनाओ जिनके विचार उच्च हों और जो आत्मसम्मानी और आत्मविश्वासी हों।
" डरे हुए को हौसला देने के लिए हम कह सकें कि - कुछ नहीं होगा , चिंता ना करो हम तुम्हारे साथ हैं आदि-आदि बातें हौंसला दे सकती हैं। "
ऐसे लोगों से रखो जो ख़ुदग़र्ज ना हों और समय पर और कुछ नहीं तो हिम्मत और हौंसला दे सकें , ऐसों से दूरी बनाओ जो मात्र समय बर्वाद करने में दिलचस्पी रखें और निराशाजनक बातों से हमारे होंसलों को तोड़ने का कार्य करें।
मुर्ख दोस्तों से अच्छा है कि अकेले ही चला जाये।
सही सलाह व दिशा से डर को काबू में कर सकते हैं। कठिन समय में वह सब करो जो हम कर सकते हैं , जो हमें करना चाहिए ; ये ही सबसे बड़ा साहस है।
साहस के बल पर हम कठिन से कठिन परिस्थितियों का सामना कर सकते हैं। " जोखिम भरी परिस्थितिओं की जानकारी होते हुए भी जरुरी कदम उठाना साहस कहलाता है। "
हर समय उदास करने वाली बातों पर ध्यान ना दें , कभी भी डर को अपने ऊपर या दूसरों के ऊपर हावी ना होने दें। बस डर के कारण खोजो और आत्मबिश्वास के साथ डर के कारण को ख़त्म करने के प्रयास करो।
चिंता करने से कार्य पूर्ण नहीं होंगे ,हमें सकारात्मक दिशा में कार्य तो करने ही होंगे।
संदर्भ ( REFERENCES ) :--
# प्रेरणा
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